वचन:
इफिसियों 4:23
और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ।
अवलोकन:
प्रेरित पौलुस इफिसुस की युवा कलीसिया से सीधे बात कर रहा है। उसने उनसे कहा कि तुम परदेशियों के पुराने मार्गौ पर लौट रहे हो। “यह वह तरीका नहीं है जिससे हमने आपको शुरुआत करना सिखाया है,” उसने कहा। हमने आपको पुरानी विदेशी विचारधारा के बारे में नहीं सोचना सिखाया, जिसमें कामुकता और हर तरह की अशुद्धता शामिल है। इसलिए, पौलुस उनसे कहता है कि “अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ” ।
कार्यान्वयन:
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि शब्दों और कर्मों के बदलने से पहले मन को बदलना जरूरी हैं। सोचने का तरीका बदलना चाहिए। नई जानकारी को संसाधित करने का तरीका बदलना चाहिए। एक बार जब कोई व्यक्ति यीशु का अनुयायी बन जाता है, तो उसे अपने मन में युद्ध की तैयारी करनी चाहिए क्योंकि हम जो कुछ भी कहते हैं या करते हैं वह मन से शुरू होता है। इससे पहले कि हम यीशु को जानते, हम सभी गलत धारणाओं से त्रस्त थे, जो “बदबूदार विचार” थे। जब प्रेरित पौलुस फिलिप्पियों 2:5 में कहता है, “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हों; वह वास्तव में कह रहा था, “तुम अपना मन बदल सकते हो!” आपको हमेशा गलत सोचने की जरूरत नहीं है। क्योंकि यदि आप अपनी सोचने की प्रक्रिया को नहीं बदलते हैं, तो आप वेदी पर यीशु से जो वादा करते हैं उसका कोई मतलब नहीं रहता। आपको “बदबुदार विचार” छोड़ देने चाहिए ताकि आप अपने घर में शांति स्थापित कर सकें। यह सब “अपने मन के आत्मिक स्वभाव” से शुरू होता है। अगर आप सोच रहे हैं कि यीशु ने “अपने आत्मिक स्वभाव से” जैसा कार्य किया वैसा कार्य कैसे करे, तो मत्ती 5, 6 इन अध्यायों को पढ़िए। एक बार जब आप ऐसा कर लेते हैं तो आप “अपना आत्मिक स्वभाव” बदलना शुरू कर देंगे।
प्रार्थना:
प्रिय यीशु
मेरे मन में हमेशा अच्छे विचार रखने में मेरी मदद करने के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूं। तेरा वचन कहता है, “मनुष्य अपने मन मे जैसा सोचता है वह वैसा बन जाता हैं। नकारात्मकता और संदेह के विचार मुझ से दुर रखे। सच्चे विश्वास, आशा और प्रेम की ओर बढ़ने में और आत्मा के फल मुझमे दिखने में मैरी सहयता करें। यीशु के नाम से आमीन।